राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने राज्य में सड़क हादसों में लगातार हो रही मौतों पर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने स्वतः संज्ञान (स्वप्रेरणा) लेते हुए जनहित याचिका दर्ज की है। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने कहा कि बीते दो हफ्तों में सड़क हादसों में करीब 100 लोगों की जान चली गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
अदालत ने दैनिक भास्कर सहित अन्य मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि राजस्थान में सड़क हादसे अब भयावह रूप ले चुके हैं। कोर्ट ने आदेश में हाल की कई बड़ी दुर्घटनाओं का उल्लेख भी किया—
- 4 नवंबर, हरमाड़ा (जयपुर): नो-एंट्री में घुसे नशे में धुत डंपर चालक ने 14 लोगों को कुचल डाला।
- 3 नवंबर, मतोड़ा (जोधपुर): अवैध ढाबे के पास खड़े ट्रेलर से टकराई ट्रैवलर, कई मौतें।
- 15 अक्टूबर, जैसलमेर: बस में आग लगने से 20 लोग जिंदा जल गए।
- 16 अक्टूबर: भास्कर रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि हादसे वाले क्षेत्र से 280 किमी तक कोई ट्रॉमा सेंटर नहीं था।
कोर्ट की टिप्पणी: असमय मृत्यु से राष्ट्र की सामूहिक शक्ति घटती है
कोर्ट ने कहा कि असमय मौतें केवल परिवार के लिए त्रासदी नहीं हैं, बल्कि यह राष्ट्र की सामूहिक शक्ति में भी कमी लाती हैं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि समाज के कुछ वर्गों में ऐसी घटनाओं के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता चिंताजनक है और यह नियामक संस्थाओं की लापरवाही को भी उजागर करती है।
पांच एमिकस क्यूरी नियुक्त, केंद्र-राज्य से जवाब तलब
मामले की प्रभावी सुनवाई के लिए कोर्ट ने पांच एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किए हैं—
एडवोकेट मानवेंद्र सिंह भाटी, शीतल कुंभट, अदिति मोड, हेली पाठक और तानिया मेहता।
इनसे सड़क और सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के सुझाव मांगे गए हैं।
कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, पीडब्ल्यूडी, गृह, परिवहन, स्थानीय निकाय और एनएचएआई को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।
13 नवंबर को अगली सुनवाई
हाईकोर्ट ने हादसों में जान गंवाने वाले परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और मामले की अगली सुनवाई 13 नवंबर 2025 तय की है। अदालत ने इस मामले को स्वप्रेरणा जनहित याचिका के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया।
